शिक्षण के सिद्धान्त व शिक्षण सूत्र
प्रसिद्ध शिखाशास्त्री हरबर्ट स्पेन्सर ने शिक्षण विधि पर विचार करते समय शिक्षण प्रक्रिया के विश्लेषण के आधार पर कुछ सामान्य शिक्षण सूत्रों की रचना की वे निम्नलिखित है।
1. ज्ञात से अज्ञान की ओरः-जो बात छात्र जानता है, उसे आधार बनाकर अज्ञात वस्तुओं की जानकारी देना।
2. मूर्त से अमूर्त की ओरः इसे ‘‘स्थूल से सूक्ष्म की ओर’ भी कहा जाता है घोड़ा देखकर घोड़े का प्रत्यय बनाया जायेगा। माॅडल, चार्ट आदि के सहारे किसी वस्तु का वर्णन करना सरल होता है।
3. अनिश्चित से निश्चित की ओर- देखी हुई वस्तु के विषय में बालक अपनी सुविधा और आवश्यकता के अनुसार कुछ अनिश्चित विचार रखता है। इन्हींे अनिश्चित विचारों के आधार पर निश्चित एवं स्पष्ट विचार बनाये जाने चाहिये। अस्पष्ट शब्दार्थों से स्पष्ट, निश्चित तथा सूक्ष्म शब्दार्थों की ओर बढा जाए।
4. विशेष से सामान्य की ओर- पहले विशेष पदार्थो पर क्रियाओं को प्रस्तुत किया जाए, तत्पश्चात सामान्य निष्कर्षांे पर पहंुॅंचा जाए। व्याकरण पढने में पहले उदाहरण प्रस्तुत किए जाये तत्पश्चात सामान्यीकरण किया जाएं।
5. मनोवैज्ञानिक से तार्किक की ओर- पहले वह पढाया जाए जो छात्रों की योग्यता एवं रूचि के अनुकूल हो, तत्पश्चात विषय सामग्री के तार्किक क्रम पर ध्यान दिया जाए।
6. विश्लेषण से संश्लेषण की ओर- एक बार शब्द, वाक्य भाव या अर्थ का विश्लेषण करके उसे छोड न दिया जाए, वरन् बाद में उनका संश्लेषण करके एक स्पष्ट सामान्य विचार बनाने की ओर छात्रों को उन्मुख किया जाए।
7. प्रकृति का अनुसरण-बालकों की प्रकृति के अनुसार शिक्षा दी जाए और प्राकृतिक वातावरण मे शिक्षा हो।
भाषा सिखाने मे ंप्राकृतिक वातावरण एवं बालक के स्वभाव का विशेष महत्व है।
8. पूर्ण से अंश की ओर-पहले वाक्य, फिर शब्द ओर तब वर्ण की शिक्षा दी जाये। पहले सम्पूर्ण कविता का वाचन हो, तत्पश्चात उसका खण्ड वाचन हो।
9. सरल से कठिन की ओर- सरल शब्दों, वाक्यांशों, मुहावरों गीतों आदि को पहले पढाना चाहिए, तत्पश्चात् कठिन विषयों को लिया जाए।
शिक्षण के सिद्धान्त व शिक्षण सूत्र नीचे विस्तार से दिए गए है:-





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