🌷मात्र 19 साल की उम्र में हिन्दुस्तान की आज़ादी🇮🇳के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले क्रांतिकारी #खुदीराम_बोस_जी❤️के 1️⃣1️⃣1️⃣वीं बलिदान दिवस पर कोटि कोटि प्रणाम एवं नमन 🙏
भारतीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास क्रांतिकारियों के सैकड़ों साहसिक कारनामों से भरा पड़ा है। ऐसे ही क्रांतिकारियों की सूची में एक नाम खुदीराम बोस का है।
खुदीराम बोस की शहादत से समूचे देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी थी। उनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत रचे गए और इनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ। उनके सम्मान में भावपूर्ण गीतों की रचना हुई, जिन्हें बंगाल के लोक गायक आज भी गाते हैं।
- खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसम्बर, 1889 को हबीबपुर गाँव, मिदानपुर जिले में हुआ था।
- खुदीराम के पिता का नाम #त्रैलोक्य_नाथ_बोस तथा माता का नाम #लक्ष्मीप्रिय_देवी था।
- खुदीराम बोस रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने थे और वंदेमातरम पंफलेट वितरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- 1905 में बंगाल के विभाजन (बंग-भंग) के विरोध में चलाये गये आन्दोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था।
- ऐसा माना जाता है की वह सबसे कम उम्र के क्रन्तिकारी थे, जिन्हें फांसी दी गई थी।
- 28 फरवरी, 1906 को खुदीराम बोस गिरफ्तार कर लिये गये लेकिन वह कैद से भाग निकले।
- 6 दिसंबर, 1907 को खुदीराम ने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया परन्तु गवर्नर बच गया था।
- 11 अगस्त, 1908 को इस वीर क्रांतिकारी को फाँसी पर चढा़ दिया गया था।
- जब खुदीराम शहीद हुए थे, तब उनकी आयु 19 वर्ष थी। फाँसी के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गये कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे।
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